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पार्ट 4 प्रकरण 11 साखी 19

तीन लोक भौ पींजरा, पाप पुन्य भौ जाल | सकल जीव सावज भये, एक अहेरी काल ||19|| शब्दार्थ:- तीन लोक = जल, थल, नभ । सावज = शिकार। अहेरी = शिकारी । काल = काल निरंजन | सकल -सब जीव ।  पींजरा = कैद खाना | भौ = हुआ। भावार्थ:-  पाप-पुण्य रूप जाल में फँस कर जीव-मानव तीन लोक के कैद खाने में (अनेक योनि रूप) क़ैद हैं । ये सभी जीव, एक शिकारी कालपुरुष (मृत्यु) के हाथों शिकार हुये हैं।  व्याख्या:- काहु न कोउ सुख-दुख कर दाता | निज कृत कर्म भोगु सब भ्राता ।। (मानस- अयो. 91/4) कोई भी किसी को दुख व सुख नहीं देता सभी प्राणी शरीरस्थ किये हुये कर्म फल अन्यान शरीर धारण कर भोगते हैं।  कर्म प्रधान विस्व करि राखा | जो जस करइ सो तस फलु चाखा ।।(मानस- अयो. 218/4) जो जैसा करेगा उसे वैसा ही फल प्राप्त होगा। क्योंकि इस विस्व (सृष्टिरचना) में कर्म की प्रधानता है। न हि कश्चित्क्षणमपि, जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् । कर्म ते ह्यवश: कर्म, सर्वः प्रकृति जैर्गुणै ॥ (भ.गी.अ. 3/5) निसन्देह कोई भी मनुष्य किसी भी काल में क्षणमात्र भी बिना कर्म किये नहीं रहता, क्योंकि सारा मनुष्य समुदाय प्रकृति जनित गुणों द्वारा परवश ...

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